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Global Warming और Climate Change से बढ़ रही ख़ौफ़नाक गर्मी पर रिपोर्ट

पृथ्वी के दिनों में वैश्विक स्थिति की चपेट में आ रही है| इस स्थिति की ग्रेब्रिटी का पता IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change की ‘1.5 डिग्री सेल्सियस की Global warming पर विशेष रिपोर्ट’ से चलता है, ‘1.5 डिग्री सेल्सियस की effects of global warming पर विशेष रिपोर्ट’ औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने की तीखी होती है।

Global warming vs climate change

रिपोर्ट के अनुसार 2 डिग्री सेल्सियस की आय की स्थिति होने की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर वर्ष 2100 तक विश्व 3% अधिक समृद्ध हो सकता है| ग्लोबल टॉपिक का हद से कहीं आगे निकल गया है| सूखे की बारंबारता में इजाफा, बाढ़ आने की दर में जाम और तटीय क्षेत्र के डूबने का खतरा जैसे प्रभाव सामने आ रहे हैं। about global warming introduction.

Global warming क्या है

Global warming definition को समझने के लिए इसे Greenhouse गैस और Greenhouse effect के साथ जोड़कर देखना होगा दरअसल Greenhouse गैसें पृथ्वी के Atmosphere में मौजूद होती हैं पृथ्वी पर आने वाले सूर्य प्रकाश का विकिरण वापस Atmosphere में होता है तो यह गैस प्रकाश को Atmosphere से बाहर जाने देती हैं, लेकिन उसके ऊष्मा ट्रैप लेती हैं, कार्बन डाई ऑक्साइड यानि CFC (Chlorofluorocarbon) HFC (Hydrofluorocarbon) जैसी गैसें Greenhouse गैसों के बड़े चर्चित उदाहरण हैं।

दुनिया दिनों दिन गर्म होती जा रही है मानव जीव जंतुओं और वनस्पतियों के जीवन के आधार में बड़ी भूमिका निभाने वाली पृथ्वी दिनों दिन Global warming के चपेट में तेजी से बढ़ रही है और इसके आगे सारा संसार अपने आप को असहाय पा रहा है अचरज की बात यह है कि इस प्रक्रिया के लिए कोई प्राकृतिक कारक जिम्मेदार नहीं है बल्कि विवेकशील माने जाने वाले मानव की रोजमर्रा की गतिविधियां इसके प्रमुख कारण हैं।

Causes of global warming को लेकर एक आम आदमी शायद एक पल के लिए यह धारणा बनाता होगा कि पर्यावरण के जानकारों के लिए ही इसका महत्व है जबकि वह इस बात से अनजान रहता है कि कहीं वह भी ग्लोबल वॉर्मिंग के विकास में हाथ तो नहीं बटा रहा। Jalvayu parivartan.

Global warming vs climate change के नुकसान

दरअसल Global warming और इसके नुकसान को लेकर चर्चा एक बार फिर चल पड़ी है दरअसल पिछले दिनों IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change के नाम से प्रचलित इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज नाम की संस्था ने Global warming को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है, इस रिपोर्ट का नाम है स्पेशल रिपोर्ट ऑन Global warming ऑफ 1.5 डिग्री सेल्सियस।

आज के इस आर्टिकल के रिपोर्ट की बातों को विस्तार से समझेंगे, साथ ही इस बात की तह तक जाने की कोशिश करेंगे कि आखिर ग्लोबल वॉर्मिंग इतना चिंताजनक मुद्दा कैसे हो गया, इसके अलावा Global warming को कंट्रोल करने के लिए भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर किए जा रहे प्रयासों की पड़ताल करेंगे लेकिन इस पूरी चर्चा के केंद्र बिंदु Global warming का अर्थ जानकर हम अन्य बिंदुओं पर ज्यादा अच्छे से बात कर पाएंगे। Climate change essay in Hindi.

ग्रीन हाउस क्या होता है? What is Greenhouse

आपको बता दूं कि ठंडे Climate वाले जगहों पर पौधों को उगाने के लिए शीशे के दीवार जैसी एक संरचना बनाई जाती है इसे (ग्लास हाउस) Greenhouse भी कहते हैं इसकी खूबी यह होती है कि सूर्य प्रकाश के अंदर जाने के बाद लॉन्ग वेव लेंथ वाले प्रकाश का ताप इसी में वापस हो जाता है इस प्रकार के ताप से पौधों के उगने में मदद मिलती है दरअसल हमारे भी इसी Greenhouse की तरह काम करती है पृथ्वी के Atmosphere की जो सूर्य प्रकाश के सुषमा को टाइप कर लेती हैं उन्हें को Greenhouse गैसें कहा जाता है।

वैज्ञानिकों को 1824 से इस बारे में जानकारी है कि Greenhouse effect पृथ्वी के लिए क्या मायने रखता है 1824 में  जोसेफ फोर्रियर नाम के वैज्ञानिक ने इसका पता लगाया था कि यदि पृथ्वी पर Atmosphere ना होता तो यह बेहद ठंडी होती. दरअसल Greenhouse effect के कारण पृथ्वी को पर्याप्त ऊष्मा मिल जाती है और यही कारण है कि यहां की Climate रहने योग्य बन सकी है लेकिन आज की हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है औद्योगिक विकास की अंधी दौड़ ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है।

ग्रीनहाउस गैसों के प्रतिशत में बढ़ोतरी के कारण

Atmosphere में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी के वजह से Atmosphere से बाहर जाने वाले सूर्य प्रकाश की ऊष्मा की ट्रैपिंग जरूरत से ज्यादा होने लगी है, हालत यह हो गई है कि पृथ्वी के Atmosphere की निचली परत जिसे  छोभ मंडल भी कहते हैं उसके आसपास के वातावरण में पर्याप्त से भी कहीं अधिक ऊष्मा का जमा होने लगा, इस स्थिति को Global warming का नाम दिया गया।

लिहाज़ा अब यह Global warming अपने पैर पसारने लगी है और इस पर काबू नहीं पाया गया तो इसका खामियाजा पूरे विश्व को भुगतना पड़ेगा हाल में जारी की गई रिपोर्ट पर इन्हीं बिंदुओं पर गौर किया गया है, आइए अब इस रिपोर्ट के जरिए पूरी स्थिति पर नजर  डालते हैं,

इस बात का जिक्र करती है क्या समय की दरकार है कि औसैत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक कर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से न बढ़ें, कहने का मतलब उस काल का औसत वैश्विक तापमान यदि 30 डिग्री सेल्सियस माना जाए तो इसे अधिकतम 31.5 डिग्री सेल्सियस तक ही होना चाहिए, IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change द्वारा रिपोर्ट जारी कर यह चिंता जताई गई है कि कार्बन उत्सर्जन की वर्तमान दर इतने ही रही तो 2030 से  2052 के बीच औसत वैश्विक तापमान इस 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा।

Climate Change होने से नुक्सान क्या हैं?

अभी की स्थिति देखें तो वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया है, वैज्ञानिकों का मानना है, कि औसत वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की बढ़ोतरी होने पर Climate Change (Jalvayu parivartan) का बहुत भयंकर प्रभाव पड़ सकता है आपको बता दें कि 2015 में पेरिस में आयोजित Climate सम्मेलन में ऐसे उपायों की आशा की गई थी।

औसत वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक ना बड़े लेकिन आज इन उपायों में Greenhouse गैसों के अंधाधुंध उत्सर्जन पर रोक लगाना बड़ी चुनौती बन गई यहां एक रोचक बात पर विचार करना बहुत जरूरी है, कि आखिर वैश्विक औसत तापमान में यदि डेढ़ डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का गणित इतनी चर्चा में क्यों आ गया है।

दरअसल कई वैज्ञानिक शोध पत्रों ने दर्शाया है कि वैश्विक औसत तापमान में यदि 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी होती है, तो लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों में प्रतिवर्ष डेंगू के लगभग 3.3 मिलियन मामलों की रोकथाम की जा सकती है 2016 में ही क्लाइमेट चेंज नाम की एक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन की मानें तो डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक की तापमान वृद्धि का आंकड़ा प्राप्त करने पर इस शताब्दी के अंत तक विश्व भर में अल्प पोषित लोगों की संख्या में 25 मिलियन तक की कमी आ सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग का कारण

इसी वर्ष नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन का भी मानना है कि 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से उत्पन्न होने वाली स्थिति की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होने पर वर्ष 2100 तक 3% अधिक संपन्न हो सकता है, ऐसा भी माना जा रहा है कि औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर मौसम में चरम परिवर्तन आ सकता है।

जैसे भारी बारिश होना सूर्य के तेज़ गर्मी के कारण ही हीट वेव में बढ़ोतरी इत्यादि, इस लिहाज़ा से IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change की हालिया रिपोर्ट खासा महत्व रखती है, इस रिपोर्ट को प्राथमिकता देते हुए विकल्प अपनाने की दरकार है जो Global warming के बेहद हानिकारक प्रभावों पर काबू पा सके।

Global warming चिंताजनक मुद्दा क्यों हैं?

आइये अब बात करते हैं कि आखिर Global warming in india चिंताजनक मुद्दा कैसे हो गया,  Global warming अचानक होने वाली किसी घटना का परिणाम नहीं है, दरअसल जैसे-जैसे हमने विकास की छलांग लगानी शुरू की, वैसे वैसे  प्रकृति के साथ खींच तान का दौर शुरू हो गया, घने जंगलों को कटा जाने लया, बड़े बड़े कल कारखानों को स्थापित किया जाने लगा, साथ ही नए उपकरणों का अविष्कार किया जाने लगा।

कल-कारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं और रेफ्रिजेटर, एसी जैसे उपकरणों से निकलने वाली Greenhouse गैसों ने वतावरण को जरुरत से ज्यादा गरम करने का काम किया, एक समय था जब वन एक बेहतर कार्बन सिंक की भूमिका निभाते थे, कार्बन सिंक से तात्पर्य यह है की कार्बन डाइऑक्साइड जैसी Greenhouse गैसों को अब्ज़ोर्ब कर लेते थे।

एक आंकड़े के मुताबिक 1990 से 2007 के दौरान दुनिया भर में वनों ने प्रतिवर्ष लगभग 2.4 गीगा टन कार्बन का भंडारण किया था लेकिन वनों के लगातार उन्मूलन ने चिंताजनक स्थिति पैदा कर दी विशेषज्ञों का यहां तक कहना है कि वर्ष 2100 तक Global warming टेंपरेचर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी तक सीमित रखने के लिए यह निहायत जरूरी है, कि वन कार्बन का बड़ी मात्रा में संचयन करें यह बताना महत्वपूर्ण होगा कि Climate Change के मद्देनजर वनों के महत्व को समझा तो गया है और साथी लिहाज से वैश्विक पहल भी की गई है लेकिन इस पहल का कोई खास असर अभी तक सामने नहीं आया है।

Climate Change: RIDD क्या है?

दरअसल 2007 में RIDD रिड्यूसिंग एमिशंस फ्रॉम डिफॉरेस्टेशन एंड फॉरेस्ट अपग्रेडेशन यानि प्लस का गठन किया गया था इसका उद्देश्य वनोन्मूलन को नियंत्रित करने के लिए ग्लोबल तैयार करना था इसके बावजूद हालत यह है कि वैश्विक तौर पर वनों के उन्मूलन को रोकने या फिर बड़ी मात्रा में लगाए जाने के मजबूत प्रमाण नहीं मिले हैं सच तो यह है।

विश्व भर में अलग-अलग देशों में वनों के प्रबंधन से जुड़े मुद्दे अलग-अलग और जटिल हैं इस कारण से रेड प्लस जुड़े नियमों को लागू करने में भी दिक्कतें आती हैं ऐसे मुद्दे पर यदि भारत की बात करें तो इसमें भी वनों की सहायता से 2030 तक 2:30 से 3:00 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड यानि कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य रखा है लेकिन सरकार को इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अभी भी ठोस प्लानिंग की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण कौन से हैं?

दूसरी तरफ कल कारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं और रेफ्रिजेटर, एसी जैसे उपकरणों से निकलने वाली Greenhouse गैसें वातावरण को जरूरत से ज्यादा गर्म करने का काम किया है परिवहन क्षेत्र और विद्युत क्षेत्र भी हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में सहायक हैं।

इसके अलावा यदि सैनिटेशन सेक्टर की बात करें तो यह बड़ी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन करता है ऐसा देखा गया है कि मीथेन ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की तुलना में कहीं अधिक नुकसानदेह हो सकती है लेकिन अक्सर इसके बारे में यही समझ लिया जाता है, कि यह एक अस्थाई किस्म का प्रदूषक है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि Global warming ने ग्लोबल क्लाइमेट को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

 ग्लोबल वार्मिंग के कारण और प्रभाव क्या हैं?

आइये अब एक नजर डालें Global warming वजह से क्या परिणाम देखते हैं अभी तक हमने जो चर्चा किए उसे यही जाहिर होता है कि Global warming का मुद्दा हद से कहीं आगे निकल गया है Climate Change में इसकी भूमिका ने कई मायनों में बदलाव किए हैं जहां एक तरफ औसत तापमान में इजाफा हुआ है वहीं वर्षा का पैटर्न भी बदला है।

सूखे की बारंबारता में इजाफा हुआ है बाढ़ आने की दर बढ़ी है और तटीय इलाकों के डूबने का खतरा भी बड़ा है नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन ने कार्बन उत्सर्जन की घरेलू सामाजिक कीमत का अंदाजा लगाया है कार्बन उत्सर्जन का सामाजिक स्तर पर कितना नुकसान हो सकता है, इस कीमत से इस बात का पता लगता है।

ग्लोबल वार्मिंग का कृषि पर प्रभाव

अध्ययन से पता चलता है कि भारत को प्रति टन कार्बन उत्सर्जन पर लगभग $90 का नुकसान होता है जो कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा है. स्पेशल रिपोर्ट ऑन Global warming ऑफ 1.5 डिग्री सेल्सियस ने भी चेताया है, कि Global warming के असर पर अगर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति और बदतर हो सकती है।

इसके अनुसार तटीय देशों और भारत जैसे कृषि अर्थव्यवस्था आधारित देशों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ सकता है साथ ही फसल की उपज में गिरावट और Climate Change होने से 2050 तक गरीबों की संख्या में लाखों का इजाफा हो सकता है इसलिए यह रिपोर्ट एक बड़ी चेतावनी साबित हो रही है, कि पूरी दुनिया को जल्द से जल्द और एकजुट होकर इस स्थिति का समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए।

Global warming से निपटने के उपाय

आपको बता दें कि छोटे छोटे द्वीपीय देश और कई अल्पविकसित देश इस बात को लेकर खासा जोर दे रहे हैं कि वैश्विक औसत तापमान में पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी होनी चाहिए लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए सबसे बड़ी चुनौती कार्बन उत्सर्जन करने वाले बड़े देश हैं, क्योंकि ऐसे में उन्हीं को सबसे पहले अपने यहां होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती करनी पड़ेगी।

दूसरा उपाय यह है कि यह देश अन्य विकासशील और अल्प विकसित देशों को बड़ी मात्रा में वित्तीय और तकनीकी सुविधा मुहैया कराएं आईसीसी IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि अमेरिका यूरोपीय संघ और भारत जैसे देशों को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने चाहिए।

रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है, भूमि, उर्जा, भवन निर्माण, परिवहन और शहरों के विकास और क्लाइमेट से जुड़े पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा आजकल कुछ ऐसी तकनीक इजाद करने पर भी विचार हो रहा है जो Atmosphere में से कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा को हटाकर उसे स्थाई या अस्थाई रूप से कहीं और स्टोर कर दें हालांकि अभी तक ऐसी तकनीक विकसित नहीं हो पाई है।

वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देना Greenhouse गैसों का उत्सर्जन करने वाले उपकरणों के जैविक विकल्पों को अपनाना जैसे उपायों पर भी विशेष रूप से काम करने की दरकार है इन सबके अलावा संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में ग्रीन क्लाइमेट फंड भी बनाया गया है यह एंड क्लाइमेट चेंज से जूझ रहे देशों को उनकी सहायता के लिए धनराशि मुहैया करता है।

अभी हाल ही में लगभग 1 बिलीयन डॉलर की धनराशि 19 को ध्यान में रखकर मुहैया कराई गई है इंडोनेशिया में जियो थर्मल एनर्जी से जुड़े प्रोजेक्ट और भारत के तटीय इलाकों के संरक्षण से जुड़ा प्रोजेक्ट इनमे में शामिल हैं यहाँ इस बात की चर्चा लाजमी है कि भारत ने भी अपने यहां पर्यावरण संरक्षण के लिए एक CAMPA (कैंपा) फंड बनाया है।

इसका पूरा नाम प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी/CAMPA) जो कंपनियां या कल कारखानों के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करती हैं वह इसके एवज में फंड में पैसा जमा कराती हैं इस पैसे का उपयोग अन्य स्थानों पर बड़ी मात्रा में पेड़ लगाने के लिए किया जाता है इन सराहनीय कदमों के बावजूद IPCC Intergovernmental Panel on Climate Change की रिपोर्ट को देखने से लगता है कि अभी और अधिक प्रयास की दरकार है तभी स्थिति कुछ नियंत्रित हो सकती है।

Q and A.

Q: CAMPA क्या है?

Aकंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA) जो कंपनियां या कल कारखानों के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करती हैं वह इसके एवज में फंड में पैसा जमा कराती हैं।

Q: RIDD क्या है?

A: रिड्यूसिंग एमिशंस फ्रॉम डिफॉरेस्टेशन एंड फॉरेस्ट अपग्रेडेशन यानि रेड प्लस का गठन किया गया था इसका उद्देश्य वनोन्मूलन को नियंत्रित करने के लिए ग्लोबल वार्मिंग तैयार करना था।

Q: ग्लोबल वार्मिंग के लिए कौन सी गैस जिम्मेदार है?

A: ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार प्रमुख गैस कार्बन डाइऑक्साइड है।

Q: ग्रीन हाउस के कितने प्रकार के होते हैं?

A: ग्रीनहाउस को कांच के ग्रीनहाउस और प्लास्टिक ग्रीनहाउस के रूप में विभाजित किया जा सकता है

Q:जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्या है?

A: जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया के मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि होगी जिससे बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएँ पैदा होंगी। जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी। ताजे जल की आपूर्ति पर गम्भीर प्रभाव पड़ेंगे।

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर यह रिपोर्ट मानव समाज को आगाह करती दिख रही है कि अभी ना संभले तो शायद मानव विनाश के साथ इस पूरे जीव जगत के विनाश का जिम्मेदार खुद मानव ही होगा हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति का संरक्षण हमारे जीवन का आधार है, भारतीय वेदों पुराणों में कई स्थानों पर प्रकृति के महत्व को दर्शाया भी गया है आज भारत सहित पुरे विश्व को इस मुद्दे पर आपसी सहयोग के साथ काम करने की जरूरत है तभी हम Global warming के ताप से मुक्त हो पाएंगे नहीं तो यही ताप हमारे विनाश की कहानी लिखेगा।

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